मंडलेश्वर - मेरा गाँव

अंग्रेजी में एक कहावत है कि अच्छाई की शुरुवात घर से होनी चाहिए, तो हमने कहा क्यों न हम भी अपने ब्लॉग की शुरुवात अपने गृहनगर से करें , मंडलेश्वर , मेरा गाँव, किसी कवी की कविता जो बरसों पहले इंदौर रेडियो स्टेशन पर सुनी थी बरबस याद आ गई है .. उद्धृत कर रहा हूँ (कवि का नाम नहीं जानता इसलिए क्षमा चाहता हूँ कि लिख नहीं पाया , जिन साहब की भी कविता है उनसे आशा है कि वे चेतन भगत नहीं बनेंगे )

मेरा गाँव
युदिष्ठिर का दांव
लगाये न लगे
चाहे कितना खेलते जाओ

मेरा गाँव
पत्थर की नांव
तिराए न तिरे
चाहे कितना जोर लगाओ...



 मंडलेश्वर मध्य प्रदेश के खरगोन  जिले में नर्मदा के उत्तर तट पर स्थित एक छोटा सा क़स्बा है, पंडित  मंडन मिश्र की यह नगरी पुरातन काल में महिष्मति का एक हिस्सा हुआ करती थी ,महिष्मति पौराणिक काल में उस राजा कार्त्विर्याजुन की राजधानी थी जिसने रावण को बाँध लिया था , महिष्मति देवी अहिल्या के काल में होलकर शासन की राजधानी बनी और उसका उद्धार प्रारंभ हुआ , उस दौर में मंडलेश्वर प्रगति से अछूता रह गया , यद्यपि अंग्रेजों के शासनकाल में इसके दिन फिरे और यह वर्ष १८२३ में  निमाड़ रीजेंसी की राजधानी बन गया ( १८६४ तक जब राजधानी को खंडवा स्थानांतरित कर दिया गया)  , उस समय यहाँ अनेक अंग्रेज अफसर रहा करते थे और उनके बंगले अब भी विभिन्न शासकीय विभागों के कार्यालय एवं अधिकारीयों के निवास स्थान के रूप में प्रयोग किये जा रहे हैं, उस समय के जिला मुख्यालय का कार्यालय में अब एक स्कूल चलता है , इस स्कूल भवन की भव्यता इसके इतिहास का वर्णन  खुद ब खुद करती है. ये भवन स्कूल के रूप में सन १९५२ से प्रयोग में आ रहा है और उस समय यह आस पास के १०० किलो मीटर क्षेत्र में अकेला भव्य स्कूल था , इस स्कूल में ऐसी सुरंगें हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि ये अनेक दूर स्थानों तक जाती हैं , हालाँकि इन्हें अनेक वर्षों से बंद कर दिया गया है. यहाँ पुरातन कालीन वो गुप्तेश्वर महादेव मंदिर भी स्थित है जहाँ पर कभी पंडित मंडन मिश्र और आदि गुरु शंकराचार्य के मध्य वाद विवाद हुआ था. पुरातन स्मारकों में से एक है यहाँ कि जेल जो स्वतंत्रता आन्दोलन की गवाह भी है. मंडलेश्वर में अनेक मंदिर हैं जो अत्यंत दर्शनीय हैं जिनमे हनुमान गढ़ी पर स्थित राम मंदिर और उसके आस पास स्थित शिव एवं हनुमान मंदिर अत्यंत सुन्दर हैं , इस मंदिर को एक पारसी अधिकारी द्वारा बनवाया गया था, इस मंदिर की निर्माण शैली, और इसमें बनी बारह अवतारों की मूर्तियाँ बरबस ही मन मोह लेती हैं ,  वर्त्तमान में मोड़क परिवार एवं राम मंदिर ट्रस्ट इसका प्रबंधन सँभालते हैं. इसके अतिरिक्त यहाँ एक और अत्यंत सुन्दर मंदिर है दत्त मंदिर , भगवान् दत्तात्रेय का यह मंदिर बड़ा ही सुन्दर है , इसके बारे में एक रोचक तथ्य यह है कि यहाँ पर अनेक साधू संतों के साथ साथ अलबर्ट आइन्स्टाइन  का भी चित्र  लगा हुआ है, तथा यहाँ उनका नाम अद्वैतमहर्षि  उद्बोधन से लिखा गया है,    ऐसा उनके अद्वैत वाद में विश्वास रखने के कारण किया गया है. एक अन्य रोचक तथ्य यह है कि यहाँ पर प्रति वर्ष दत्तात्रेय भगवान् का अभिषेक लेनिन ( तिथि याद नहीं ) एवं  अलबर्ट आइन्स्टाइन ( २८ अप्रैल)  की ओर से किया जाता है.  इसके अतिरिक्त इस कसबे से करीब ३ किलो मीटर दूर स्थित है नर्मदा पर बन रहा श्री  महेश्वर  हायडल   पॉवर प्रोजेक्ट जो कि नर्मदा पर पनबिजिली की एक महत्वकांक्षी परियोजना  है, साथ ही यहाँ पर स्थित है नर्मदा जल प्रदाय योजना जिससे यहाँ से लगभग १०० कि.मी. दूर स्थित इंदौर शहर को जलापूर्ति की जाती है. मंडलेश्वर बडवाह मार्ग पर मंडलेश्वर से तीन किलोमीटर नर्मदा जल प्रदाय योजना के समीप चैतन्य धाम नमक एक साधना स्थली है , इसे लोक स्वास्थ्य   यांत्रिकी विभाग से सेवानिवृत्त श्री भालचंद्र जोशी ने बनवाया है, महाराष्ट्र के सतारा जिले के गोंदवले के  संत श्री ब्रह्मचैतन्य  महाराज के परम शिष्य श्री जोशी  जी ने एक अन्य विभूति श्री दत्ता भैय्या कुळकर्णी  की प्रेरणा से इसका निर्माण किया , आनंद का पर्याय श्री जोशी जी यहाँ रह कर ईश्वर की साधना में न केवल स्वयं लीन रहते हैं बल्कि यहाँ आकर नामस्मरण करने वालों की सेवा भी करते हैं, कलियुग में ऐसे लोग कम ही लिखाई देते हैं. वहीँ मंडलेश्वर महेश्वर मार्ग  पर स्थित है होम थेरपी का अंतर्राष्ट्रीय प्रधान केंद्र , यहाँ यज्ञ के द्वारा कृषि , स्वस्थ्य  सुधार इत्यादि पर  सतत शोध  चलता रहता है, विश्व में अनेक स्थानों पर इनकी शाखाएं होने से अनेक देशों के शोधार्थी यहाँ आते रहते है, इस केंद्र में आने पर ऐसा प्रतीत ही नहीं होता की आप मध्यप्रदेश में कहीं खड़े है , संभवतः नर्मदा किनारे के सबसे सुन्दर स्थानों में ये एक स्थान होगा. मंडन मिश्र की यहाँ पुरातन नगरी शिक्षा के क्षेत्र में भी निरंतर आगे बढ़ रही है , बस कमी है तो उद्योगों एवं रोजगार परक संस्थानों की. अनेक बड़ी बड़ी परियोजनाओं ,   जिला न्यायालय , अनेक शासकीय विभागों के कार्यालय होने के बावजूद इस कसबे में विकास कहीं रुका सा प्रतीत होता है , लगता है जैसे ये क़स्बा किसी पत्थर कि नाव कि भांति पिछले साठ वर्षों से नर्मदा के किनारे जड़ सा  खड़ा है. खैर उम्मीद की जाए के ये नगरी  कभी  फिर विकास के मार्ग पर दौड़ेगी , आप जब भी ओम्कारेश्वर आयें, तो महेश्वर मंडलेश्वर  देखना मत भूलियेगा ... महेश्वर के बारे में अगले ब्लॉग में लिखूंगा ... जय जय ...........   

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