
जी मराठी का एक रिआलिटी शो "सा रे गा मा पा" खत्म हुए आज दो दिन हो चुके हैं , पर मेरे दिमाग से इसके विचार जाने का नाम नहीं ले रहे हैं , सोचा बहुत था के इस बारे में कुछ न लिखूं पर मन मान नहीं रहा है . सा रे गा मा पा जी मराठी चैनल पर प्रसारित होने वाला एक रिआलिटी शो है, इसका फॉर्मेट बहुत कुछ गजेन्द्र सिंह के हिंदी सा रे गा मा की ही तरह है. परन्तु इसमें स्थान पाना शायद सबसे कठिन है , और शीर्ष स्थान पर जगह बना पाना तो और भी कठिन. मराठी भाषी लोग संगीत , नाट्य , कला और साहित्य की गहरी समझ रखते हैं , वे अगर अच्छे गायक नहीं हैं तो फिर निश्चित ही अच्छे श्रोता होंगे , और उपरोक्त सारी विधाओं की गहरी विवेचना करने की शक्ति रखते हैं. ऐसे में मराठी के इतने स्तरीय कार्यक्रम में हिस्सा लेना और शीर्ष प्रतिभागियों में अपना स्थान बनाने का कार्य यदि कोई गैर मराठी करे तो ये आश्चर्य का विषय भी है और कौतुक का भी. गत पर्व में अंतिम तीन तक पहुंचे प्रतियोगियों में दो प्रतियोगी गैर मराठी थे और एक मराठी. गायन कौशल की यदि बात करें तो अकेली मराठी गायिका उर्मिला धनगर बाकि दो प्रतियोगियों ( राहुल सक्सेना एवं अभिलाषा चेल्लम ) के मुकाबले उन्नीस थी, सारे जज बाकि दो प्रतियोगियों और खास कर अभिलाषा चेल्लम के साथ थे , एस एम एस के द्वारा फैसला होने से मराठी प्रतिभागी का जीतना तय था यद्यपि इस फैसले पर जजों की प्रतिक्रिया ये स्पष्ट करने वाली थी के वे इस फैसले से बिलकुल खुश नहीं थे. लगभग कुछ महीनों बाद जी TV पुनः अपने अगले पर्व के साथ प्रस्तुत हुआ यहाँ फिर नए गायकों को सुनने का मौका मिला इनमे एक चेहरा था राहुल सक्सेना का जो पिछले बार अंतिम तीन में अपनी जगह बनाने में कामयाब हुआ था , गैर भाषायी होने के बाद भी उसकी पकड़ मराठी गीतों , उनके उच्चारण एवं शब्दों की भावों की सटीक प्रस्तुति ने राहुल को पुनः अंतिम तीन में लाकर खड़ा कर दिया , रविवार एक अगस्त को नाशिक में इस पर्व का अंतिम मुकाबला था , वोट फिर एस एम एस के जरिये डालने वाले थे और इसीलिए मुझे राहुल के जीतने की उम्मीद थोड़ी कम ही थी , मगर कार्यक्रम के मध्य कार्यक्रम के सूत्र संचालक जीतेन्द्र जोशी ने श्रोताओं से पूछा की उनकी राय में विजेता कौन होना चाहिए और आश्चर्यजनक रूप से लग भग सभी लोगों की प्रतिक्रिया राहुल सक्सेना के पक्ष में थी. मैं सांस थामे कार्यक्रम के अंत में इसके परिणाम का इंतज़ार कर रहा था , परिणाम आया और फिर वही हुआ जो होता आया है , मराठी प्रतियोगी ( अनिरुद्ध जोशी ) कमतर होते हुए भी जीत गया.
वो क्षण जब ऐसा फैसला सुनाया गया राहुल या उसका गायन पसंद करने वालों के मन पर तो जो गुजरी होगी उसकी कल्पना तो हम कर ही सकते हैं मगर एक मराठी भाषी होने के नाते मेरा मन शर्म से भर गया , यदि यही हमारी संस्कृति एवं संस्कार हैं कि हम एक व्यक्ति को इसलिए ऊपर न उठने दें कि वो गैर मराठी है , तो फिर हमे शिवाजी कि परम्परा का रक्षक कहलाने का कोई अधिकार नहीं , छत्रपति कि परंपरा समभाव की परंपरा है , न्याय की परंपरा है , विश्वास की परंपरा है , वो मराठी गैर मराठी के साथ सामान व्यव्हार की प्रेरणा देती है . यहाँ पर अनिरुद्ध जोशी इसलिए विजेता हुए क्यों की वे अकेले मराठी प्रतियोगी थे ( यद्यपि मैं उनकी शास्त्रीय संगीत के रियाज़ एवं पकड़ की दाद देता हूँ मगर वे राहुल सक्सेना से कमतर रहे ये तथ्य है). जब मैं महाराष्ट्र में रहा मेरी मेरे अनेक स्थानीय मित्रों उनके अति महाराष्ट्र वाद को लेकर सदैव शिकायत रही, मुझे आश्चर्य होता था जब मेरे ही सहपाठी पंडित जितेन्द्र अभिषेकी, कुमार गन्धर्व, या शोभा गुर्टू के ऑडियो कैस्सेट्स मेरे कमरे में देख कर आश्चर्य से पूछते की ये लोग कौन हैं ? , मुझे आश्चर्य होता की पर प्रांतीयों से नफरत करने वाले इन भाईयों को कुल जमा ग्यारह मनाचे श्लोक भी याद न थे , मुझे आश्चर्य होता इन्हें कुसुमाग्रज की कविताओं के विषय में केवल इतना पता था की वे पाठ्यक्रम का हिस्सा थीं. ये सब बताने का मेरा उद्देश्य ये कतई नहीं है की मैं मराठी भाषियों के विषय में भला बुरा कहूँ , बल्कि मेरा उद्देश्य केवल ये समझाना है कि केवल जय महाराष्ट्र का नारा लगाने से महाराष्ट्र जय नहीं होगा , वो होगा शिवबा की संस्कृति को सहेजने से उसका पालन करने से , महाराष्ट्र केवल उसकी राजनैतिक सीमाओं तक ही सीमित नहीं है जिसे हम देश के नक़्शे पर देखते हैं , महाराष्ट्र उस मराठी संस्कृति में है जो महाराष्ट्र के बाहर भी लाखों दिलों में बसती है , ये वो मराठी संस्कृति है जो राहुल सक्सेना , अभिलाषा चेल्लम या अपूर्वा गज्जला के स्वरों में झलकती है, ये वो संस्कृति है जो किसी राजनैतिक दल के संरक्षण की मोहताज नहीं है , ये संस्कृति रामदास समर्थ,संत ज्ञानेश्वर , संत तुकाराम , विनोबा भावे की संस्कृति है , ये संस्कृति राष्ट्रपिता के गुरु गोपाल कृष्ण गोखले, और तिलक की संस्कृति है, और क्योंकि ये मेरी संस्कृति है.
पुनश्चय : मुझे अपने मराठी होने पर गर्व है , ठीक वैसे ही जैसे मुझे अपने भारतीय होने पर गर्व है , मेरे विचार में हम लोग कल रहें न रहें ये भाषाएँ ये संस्कृति कल अवश्य रहेगी और इसीलिए अपने आदमी को आगे बढ़ाने की बजाय अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाएं इसी में किसी भी संस्कृति का उत्थान है . जय जय .
जय हिन्द बंधुवर.
ReplyDeleteआपकी यह बात "वसुधैव कुटुम्बकम्" की ओर संकेत करती है, जो हमारी संस्कृति है.
धन्यवाद.
अब विश्वास है कि हिन्दुत्व कभी मर ही नहीं सकता.
@ aanand & rajeev आप दोनों का साधूवाद , राजीव जी मैं वर्ड वेरिफिकेशन को हटा रहा हूँ
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